अल्पमत फैसले के दिशा निर्देश
न्यायाधीश एस. पी. भरूचा (पृष्ठ 30-32)
जब याचिकाएं दाखिल की गई थीं, पुनर्वास एवं पुनस्थापना की प्रक्रिया जारी थी, अतः याचिकाकर्ता इस संबंध में किसी विलम्ब के लिए जिम्मेदार नहीं है। याचिका में परियोजना की पर्यावरणीय मंजूरियों समेत अन्य मुद्दों की ओर ध्यान आकर्षित किया गया। पर्यावरणीय मंजूरियों के संदर्भ में जो वास्तविकताएँ सामने आई हैं उसे ध्यान में रखते हुए, जबकि सार्वजनिक हित स्पष्ट रूप से दिखते हैं, यह सार्वजनिक हित के खिलाफ होगा कि न्याय सिर्फ इसलिए इन्कार कर दिया जाए क्योंकि न्यायालय के सामने याचिका देर से लाई गई।
मैंने जो कुछ भी लिखा है, उसमें यदि किसी विषय पर मैंने कुछ नहीं कहा है तो उसका अर्थ यह नहीं लगाना चाहिए कि उस संदर्भ में मेरी न्यायाधीश किरपाल के निर्णय से सहमति है।
इस संदर्भ में:-
1. पर्यावरण और वन मंत्रालय के ‘पर्यावरण प्रभाव विभाग द्वारा मंत्रालय के 27 जनवरी 1994 के आदेश, जोकि पर्यावरण प्रभाव आकलन आदेश कहलाता है, की अनुसूची-3 के अनुसार विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया जाए।
2. विशेषज्ञों की समिति परियोजना के पर्यावरणीय प्रभावों पर सभी जरूरी जानकारियाँ इकट्ठा करे। वह जो भी आवश्यक लगे वह सभी अध्ययन एवं सर्वेक्षण नए सिरे से करे। वह हो चुके सर्वेक्षणों और अध्ययनों पर भी विचार करे।
3. इन सब जानकारियों के आधार पर विशेषज्ञों की समिति (सरदार सरोवर) परियोजना के पर्यावरणीय प्रभावों का आकलन करे तथा निर्णय ले कि परियोजना को क्या पर्यावरणीय मंजूरी दी जा सकती है। और यदि हाँ, तो पर्यावरणीय सुरक्षा के किन उपायों को अपनाना होगा और उनकी क्या कीमत होगी।
4. यह सब करते समय विशेषज्ञों की समिति इस तथ्य को ध्यान में रख कि. बाँध एवं परियोजना के अन्य कार्य प्रारम्भ हो चुके हैं।
5. जब तक विशेषज्ञों की समिति द्वारा उपरोक्तानुसार परियोजना को पर्यावरणीय मंजूरी नहीं दी जाती है, बाँध पर आगे का कार्य रोका जाए।
6. गुजरात, म. प्र. और महाराष्ट्र के समस्या निवारण प्राधिकरण यह सुनिश्चित करें कि परियोजना से प्रभावित होने वाले लोगों को नियमानुसार पुनर्वसित किया गया है।
7. परियोजना को पर्यावरणीय मंजूरी मिलने के बाद, यदि वह मिलती है तो गुजरात, म. प्र. और महाराष्ट्र के सभी समस्या निवारण प्राधिकरण बाँध का कार्य प्रारम्भ होने के पहले यह प्रमाणित करें कि बाँध की वर्तमान ऊँचाई से अगले 5 मीटर की ऊँचाई तक प्रभावितों का समुचित पुनर्वास हो गया है। एवं उसके अगले 5 मीटर की ऊँचाई से प्रभावित होने वाले लोगों के लिए आवश्यक जमीन सरकारों के आधिपत्य में आ चुकी है।
8. यही प्रक्रिया अगली हर पाँच मीटर ऊँचाई के लिए अपनाई जाए।
9. किसी भी कारणवश परियोजना का कार्य, अभी या भविष्य में कभी, रूकता है और परियोजना पूरी नहीं होती है, तो उन सभी पुनर्वसित विस्थापितों के लिए यह विकल्प उपलब्ध होगा कि वे या तो पुनर्वास स्थलों पर रहें या अपने मूल स्थान पर वापस लौट जाएं, बशर्ते वह स्थान रहने लायक हो। ऐसी स्थिति में उन्हें आर्थिक या अन्य किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं ठहराया जाएगा।
उपरोक्त संदर्भ में याचिका स्वीकार की जाती है। इससे संबंधित अन्य मुददों को निरस्त किया जाता है।
नई दिल्ली
18 अक्टूबर 2000
(एस. पी. नरूचा)
न्यायाधीश