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जीवनशाला – जीवन के सच्चे विद्यालय

नर्मदा बचाओ आंदोलन के शुरूआती दिनों (१९८५-८६) में आदिवासी माता-पिता गांव की सभाओं और कई दिनों तक चलने वाले सत्याग्रहों में अपने बच्चों के साथ शामिल होते थे। सत्याग्रह के दौरान आंदोलन के नौजवान कार्यकर्ता बच्चों का मनोरंजन करते थे ताकि उनका मन लगा रहे। एक बार किसी कार्यकर्ता ने एक लपेटनेवाला बोर्ड पेड़ पर लटकाया तथा खडिया का इस्तेमाल करने लगा। यहीं से ‘विद्यालय’ चलाने का विचार पनपा।

पहली जीवनशाला १९९१ में नर्मदा किनारे बसे चिमलखेडी तथा निमगव्हाण गावों में शुरू हुई। (अब दोनों ही गांव सरदार सरोवर बांध और उसके जलाशय में लगभग डूब चुके हैं।) जीने में मददरूप कौशल के साथ नियमित शिक्षा देने वाले इन स्कूलों ने लोगों को काफी आकर्षित किया और इन जीवनशालाओं की मांग उन क्षेत्रों में बढने लगी जहां विद्यालय नहीं थे या सिर्फ कागज पर थे। इस तरह ऐसे विद्यालयों की संख्या बढी।

इस समय कुल मिला कर सात (छह महाराष्ट्र और एक मध्य प्रदेश में) आवासीय जीवनशालाएं चल रही हैं जिनमें ६ से १३ साल के करीबन ७०० से ७५० (यह संख्या बदलती रहती है) बच्चों को प्राथमिक स्तर की शिक्षा दी जाती है। इन विद्यालयों के संचालन में २६ शिक्षक तथा २६ अन्य कर्मचारी लगे हुए हैं।

कुछ जानने लायक तथ्य

  • अब तक इन विद्यालयों से ६००० से अधिक बच्चों ने शिक्षा प्राप्त की है, जिनमें ज्यादातर बच्चे उन परिवारों से थे जिनके यहां पहले से कोई सदस्य शिक्षित नहीं था। यानी शिक्षा पानेवालों की यह पहली पीढ़ी है। इनमें से कई स्नातक हो चुके हैं और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। कुछ शिक्षक या कार्यकर्ता बने तो कुछ शासकीय सेवक।
  • जीवनशाला में राज्य सरकारद्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार शिक्षा दी जाती है। इसके अलावा बच्चों की क्षमता के चौतरफा विकास के लिए कई प्रकार की अन्य गतिविधियां और कला कारिगरी चलती हैं।
  • पढाई की शुरूआत आदिवासियों की अपनी भाषा में की जाती है ताकि संवाद में कोई बाधा नहीं हो। राज्य की भाषा इसके बाद पढ़ाई जाती है। चौथी कक्षा तक दोनों भाषाओं में पढाई होती है।
  • सभी शिक्षक आदिवासी समुदाय से हैं और डीएड प्रशिक्षित हैं।
  • जीवनशाला में सुबह का नाश्ता, दो समय का भोजन (भोजन में अंकुरित दाल और उसल – उबाल कर तैयार किया गया मसालेदार अंकुरित दाल का व्यंजन)। बच्चों के चौतरफा विकास के लिए हस्तकला, गायन, चित्रकला, वन से परिचय, नृत्य तथा कई प्रकार के खेलों को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया हैं।
  • गांव के लोग जीवनशाला की देखरेख के लिए एक देखरेख कमिटी चुनते हैं, जो प्रबंधन की निर्णय प्रक्रिया में भाग लेती है।
  • धडगांव (जिला नंदुरबार) में हमारे कार्यालय से सटे शोभा वाघ मेमोरियल होस्टल में पांचवी से ऊपर की कक्षा के २५ से ३० छात्र रहते हैं। वे भी खेल, कला, सामाजिक कार्य में आगे बढते है।
  • शिक्षा को संस्कृति और पर्यावरण के अलावा लोगों की समस्याओं, मसलन बडे पैमाने पर हो रहा विस्थापन, के साथ जोड़ दिया गया है। जीवनशाला का बोधवाक्य है – लड़ाई, पढाई साथ साथ करना।
  • साल में एक बार ‘बालमेला’ का आयोजन होता है, जिसमें दूसरी से चौथी कक्षा के ७०० से ८०० बच्चे शामिल होते हैं। चार दिनों के इस आयोजन में खेल, नृत्य, गायन, नाटक जैसी विभिन्न गतिविधियां होती हैं जिसके जरिए छात्र, शिक्षक तथा गाँवों के लोग अपनी रचनात्मक प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं।
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